मंगलवार, 22 मार्च 2016

मुहब्बत का खेल (०५ नवम्बर २०१२)

लोगों का दिखावा कुछ इस कदर बढ़ा है
दिखने में ही अब तो उन्हें मजा आ रहा है
नज़रों से नज़रें अब तो हटती नहीं हैं
मुहब्बत का तूफ़ान दिल में उठे जा रहा है  I

मुहब्बत भी सड़कों पर दिखने लगी है
गलियों में चर्चा आम हो रहा है
जिसे देखो वो मुहब्बत करे जा रहा है
हर कोई मुहब्बते अंजाम से बेफिक्र हो रहा है I

दुश्मन भी मुहब्बत के करने वाले हुए हैं
सरे आम मुहब्बत का दिखावा हो रहा है
अंजामें मुहब्बत को रुसवा करके
हर कोई यहाँ तो बदनाम हो रहा है I

शाने मुहब्बत करता रहा
शान से वो तो जीता रहा
बेशर्मी का चश्मा लगता रहा
जाने कहाँ वो  बढता रहा I

कुछ लोगों ने इसको पेसा बनाया
और दिलों से खेले जा रहा है
छोड़कर उनको मजधार में ही देखो
कितनी शान से वो तो जिए जा रहा है I

आँखों में सपने सजाकर उनके
दिलों का सौदा किये जा रहा है
कभी वो इनसे कभी वो उनसे
मुहब्बत का खेल, खेले जा रहा है I

कमलेश संजीदा उर्फ़ कमलेश कुमार गौतम 


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